Tuesday, November 23, 2010

धुंए में भविष्य



आज  रास्तें से  गुज़रते  वक़्त एक लड़के को देखा जो महज़ १२ या १४ साल का होगा, पर उसके हाथों  में  जलते ज़हर को देखकर उसकी उम्र का यकीन नहीं हुआ  .वो ज़हर था सिगरेट ! आजकल ये ज़हर लोगों की जरुरत से बढ़कर एक फैशन बन गया है. युवा सोचते है कि अगर ज़िन्दगी में सिगरेट नहीं पी तो कुछ नहीं किया और इसी मानसिकता को वो अपने दोस्तों में भी  फेला  रहे है! पर शायद वो ये भूल गए है कि हर कश  में,  धुंए के साथ, वो अपने परिवार के सपनों को भी हवा में उड़ा रहे है ! इस फैशन के दलदल में फंसकर  वो अपने शारीर को  कमज़ोर बना लेते  है और जब माता-पिता को  सहारे  की जरुरत होती है, तब उनके ही कन्धों  का सहारा लेना पड़ता है ! जिस ज़िन्दगी को उन्होंने आसमान की बुलंदियों में  देखना चाहा  वो धुंए में ही सिमट कर रह जाती है !
              
                हमे आज़ादी दिलाने वाले ये सोचकर देश हमारे हवाले कर गए थे कि हम इसे सुनहरा बनायेंगे पर जिनकी ज़िन्दगी खुद  धुंए में हो, उनसे तो उम्मीद करना ही शायद बेकार होगा क्यूंकि एक स्वस्थ राष्ट्र कि उम्मीद उन्ही से करनी चाहिये जो खुद स्वस्थ हो ! आज के युवाओं कि आँखों में सपने तो बहुत है पर उन्हें पूरा करने के लिए वक़्त शायद कुछ ही को मिल पाता है और उन सपनों के पूरा होने से पहले ही वो आँखें  हमेशा के लिए बंद हो जाती है ! तेज़ी से बढ रही इस ज़हर की ललक को देखकर मन में  कई  सवाल आते  है कि क्यूँ ये सबकी ज़िन्दगी बनता जा रहा है ? क्या हम इसे रोक नहीं सकते ? क्या हम इतने बेबस हो गए है की अपने घर के चिराग को तम्बाकू के  धुंए में  जलता  देखे ?ज़रा सोचिये अगर हम सब अपने दोस्तों को इस से रोके तो कितनी जिंदगियां बच सकती है, आखिर बूंद बूंद से ही तो गढ़ा भरता है न ! ! ! !

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